मीडिया का फंडा 'एक और एक ग्यारह'


जबसे इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया ने देश में पैर पसारे हैं, तब से खबर को सनसनी बनाने और केवल सनसनी को ही खबर के रूप में दिखाने का कल्चर भी पैर पसार गया है. किसी भी खबर को सनसनी बनाने के चक्कर में मीडिया 'एक और एक दो' को 'एक और एक ग्यारह' और कई बार 'एक सौ ग्यारह' बनाने में तुला रहता है, जिसके कारण बात का बतंगड बनते देर नहीं लगती.



जिसके चलते मीडिया की रिपोर्ट पर आँख मूंद कर विश्वास करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता जा रहा है...


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आप कैसे नेता हैं?


एक नेता के बेटे ने नेता जी से मालूम किया -


"पिता जी आप तो कहते थे कि आप भी राजनीति में हैं"


नेता जी ने कहा  - 
"वो तो मैं हूँ"






बेटा तपाक से बोला

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"आप कैसे नेता हैं? केजरीवाल ने तो एक बार भी आपके घोटालों की पोल नहीं खोली!"

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मलाला युसूफजई प्रकरण - क्या बदल पाएगी लोगो की सोच?

मलाला युसूफजई के जज्बे और कोशिशों को सलाम और साथ ही उसका समर्थन करने वाली पाकिस्तानी अवाम पाईन्दाबाद। बस मलाला जैसी कोशिशें करने वालों की तादाद कम ना होने पाए और इसका समर्थन करने वाले दुनिया भर के लोग बस 'समर्थन भर' करने की जगह उसकी सोच को अपनी सोच बना लें, सही और गलत का फर्क करना सीख जाएं, यही रब से दुआ है।

लेकिन इसके साथ-साथ इसकी उड़ान को रोकने की कोशिश करने वालों के खिलाफ भी तो सख्त से सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। इस बच्ची के समर्थन में तो वहां की सरकार नज़र आ रही है, लेकिन उन लोगो के खिलाफ क्या कार्यवाही हुई? और उन जैसी सोच रखने वाले लोगो का क्या? उनकी सोच को कैसे दुरुस्त किया जा सकता है? इस तरफ भी तो कदम बढाने की आवश्यकता है।

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बिना तथ्य के आरोप लगाने से किसको फायदा?

कानून मंत्री  की प्रेस कांफ्रेंस के बाद मुझे इस बात में कोई संदेह नज़र नहीं आता है कि उनके ट्रस्ट ने विकलांगों को सामान बांटने के लिए कैम्प लगाए. हालाँकि हस्ताक्षर असली हैं या नकली यह साबित होना बाकी है. इसलिए मैं अपने फेसबुक स्टेटस को वापिस लेता हूँ जिसमें मैंने कहा था कि -

 

Shah Nawaz
Yesterday

विकलांगों को भी नहीं बख्शते सत्ताधीश... आम आदमी की तो बिसात ही क्या!




हालाँकि कोई और तथ्य सामने आएगा तो इस स्टेटस पर भी विचार किया जा सकता है।

साथ ही मैं आरोप लगाने वालों से अनुरोध करता हूँ कि बिना जल्दबाजी के तथा तथ्यों की पूरी जांच-परख करके ही किसी पर कोई आरोप लगाएँ जाएँ। सियासी नफा-नुक्सान के लिए हलके स्तर के आरोप लगाना सियासी लोगो का काम है और इसी कारण उनपर जल्दी से कोई विश्वास नहीं करता है। इस तरह के तथ्य रहित आरोपों से उल्टा सियासतदानों को ही फायदा पहुँचने वाला है।

मेरा मानना है कि बदलाव की कोशिश करने वालों को लीक से हटकर नई सोच के साथ काम करना चाहिए।

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पुरुषों में 'विशेष' होने का अहम्



अगर हम बचपन से बेटों को विशेष होने और लड़कियों को कमतर होने का अहसास कराना बंद कर दें तो स्थिति काफी हद तक सुधर सकती है... क्योंकि इसी अहसास के साथ जब वह बाहर निकलते हैं तो लड़कियों को मसल देने में मर्दानगी समझते हैं... उनकी नज़रों में लड़कियां 'वस्तु' भर होती हैं।

यह सब इसलिए होता है कि हम बचपन से बेटों और बेटियों में फर्क करते हैं.... बेटियां घर का काम करेंगी, बेटे बाहर का काम करेंगे... बचपन से सिखाया जाता है कि खाना बनाना केवल बेटियों को सीखना चाहिए... सारे संस्कार केवल बेटियों को ही सिखाये जाते हैं, कैसे चलना है, कैसे बैठना है, कैसे बोलना है, इत्यादि।  जिन्हें शुरू से ही निरंकुश बनाया गया है, वह बड़े होकर निरंकुशता ही फैलाएंगे.

अगर हम बदलाव लाना चाहते है तो शुरुआत हमें अपने से और अपनों से ही करनी होगी। वर्ना करने के लिए तो कितनी ही बातें हैं... यूँ ही करते रहेंगे और होगा कुछ भी नहीं...

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चंद्रमौलेश्वर जी - उनका संदेसा उनके जाने के बाद आया!


ख़ुशी का झोंका आंसुओं को साथ लाया।
उनका संदेसा उनके जाने के बाद आया।


आज अचानक अपने इस ब्लॉग का कमेन्ट 'स्पैम फोल्डर' चेक कर रहा था दो देखा हैदराबाद के प्रमुख ब्लॉगर चंद्रमौलेश्वर जी, जिनका देहांत पिछले महीने की 9 तारिख को हुआ है, की नए साल की मुबारकबाद वाली टिप्पणी वहां पड़ी हुई है...





आँखों में आंसू भर आये - उनकी शुभकामनाएँ मुझे उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद मिली...


आपकी टिप्पणियाँ आपकी याद दिलाती रहेंगी चंद्रमौलेश्वर जी...

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धार्मिक वैमनस्य और परेशानी का सबब


परेशानी का सबब यह है कि हमेशा दूसरों के धर्म को अपनी मान्यताओं के चश्मे से देखा जाता है.

दूर की निगाह के चश्में से पास का या पास की निगाह के चश्में से दूर का नज़ारा साफ़ दिखाई दे सकता है क्या?

यह झगड़ों की एक बड़ी वजह है!

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