देश के लोगों को वैसे भी हर फिल्ड में इन ढोंगी बाबाओ का तरीक़ा ही पसंद आता है। हम हमेशा शाही अंदाज़ में रहने और कभी ना पुरे होने वाले सपने दिखाने वाले नेताओं को ही पसंद करते आए हैं।
यह सारा खेल परसेप्शन्स का है, जिसके ज़रिये दिव्य अथवा मसीहा की छवि गढ़ी जाती है और अलौकिक सपने दिखाए जाते हैं। लोगों के मन में अगर एक बार किसी के लिए उद्धार करने वाले मसीहा की धारणा उत्पन्न हो गई तो फिर वोह चाहे कुछ भी करता रहे।
उनकी अंधभक्ति में हम ऐसे लीन हो जाते हैं कि उनके खिलाफ उठने वाली आवाज़ों को सुनना या पुख्ता सबूतों के मिलने पर भी हकीक़त को क़ुबूल करना तो छोड़ो, उनपर अपनी जान तक न्यौछावर करने को तैयार रहते हैं।
सादगी से रहने वालों में हमें स्टारडम नज़र नहीं आता, काम करने वाले इक्का दुक्का लोग राजनीति में आते भी हैं तो वोह किसे पसंद आते हैं?