लोकप्रिय प्रधानमंत्री और कमज़ोर विपक्षी नेतृत्व

एबीपी न्यूज़ के सर्वे 'देश का मूड' के मुताबिक़ तक़रीबन हर मुद्दे पर जनता की राय मोदी सरकार के विरुद्ध है, परन्तु लोकप्रियता के मामले में प्रधानमंत्री मोदी अपने समकक्ष दूसरे नेताओं से कहीं आगे हैं... आपकी नज़र में इसके पीछे क्या कारण हो सकते है?
मेरे विचार में इसकी वजह उनके सामने किसी दूसरे 
सशक्त राष्ट्रिय नेतृत्व का नहीं होना है और अगर कांग्रेस पार्टी निकट भविष्य में मज़बूत नेतृत्व नहीं दे पाती है तो देश की जनता को और स्वयं 'केजरीवाल' को 'दिल्ली' से आगे बढ़कर नेतृत्व के इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए। बात चाहे मनमोहन सिंह सरकार के समय हो या फिर आज की, मेरा यह हमेशा से मानना रहा है कि कमज़ोर विपक्ष होना देश के लिए नुक्सान की बात है।

फिलहाल राष्ट्रीय परिदृश्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टक्कर में कोई नेता नज़र नहीं आता है, अगर केंद्र की बात करें तो एक तरफ मोदी हैं और दूसरी तरफ राहुल गांधी। अगर बात राहुल गांधी की करें तो वह राजनीति में गंभीरता के साथ नज़र नहीं आते, जब भी देश को विपक्ष के सशक्त लीडर की ज़रूरत होती है तो वोह गुमनामी में पड़े होते हैं।  या तो उनमें लीडरशिप स्किल की कमीं हैं या फिर राजनीति को लेकर अनमनापन है। 

कांग्रेस नीत अरुणांचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया, पर राहुल गांधी का कहीं पता ही नहीं है और इस मुद्दे पर उनकी जगह केजरीवाल ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का जमकर विरोध किया। इसी तरह पिछले दिनों जितने भी इश्यू रहे वहां राहुल गांधी नदारद थे, चाहे वह असहिष्णुता का मुद्दा हो या फिर केंद्र के द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय या फिर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की बेटी की शादी के दिन उनके घर पर सीबीआई रेड डालना हो।

राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी का नेता बताया जाता है, पर वह हर बड़े मुद्दे पर अपनी ना सिर्फ विपक्ष का बल्कि अपनी पार्टी का ही नेतृत्व करते दिखाई नहीं देते। अचानक कभी कहीं से आते हैं और फिर कहीं चले जाते हैं.... जबकि ज़रूरत हर समय नेतृत्व करने की है।

कुछ लोग कहते हैं कि कांग्रेस में गांधी परिवार के अलावा किसी और को प्रतिभा दिखाने का मौका नहीं मिलता जबकि मेरी सोच यह है कि किसी भी लीडर को प्रतिभा दिखाने के लिए मौके का इंतज़ार नहीं करना पड़ता।

हालाँकि यह तो तय है कि रास्ता अरविंद केजरीवाल के लिए भी लंबा है और वोह भी तब जबकि वोह उस राह पर चलना शुरू करें। और यह भी है कि अगर वोह नेशनल पॉलिटिक्स में जाना चाहते हैं तो उन्हें अंतर्विरोध से आगे बढ़कर हर राष्ट्रिय मुद्दे पर भी अपनी राय बनानी और देश के सामने रखनी पड़ेगी!

राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल के अलावा नीतीश कुमार भी अच्छे विकल्प हो सकते है, पर उनकी बिहार से बाहर की मक़बूलियत पर संदेह है। अच्छी परफॉर्मेंस के बावजूद अभी तक क्षेत्रीय नेतृत्व भी सही से नहीं कर पाए हैं, इसलिए अगर वह राष्ट्रिय राजनीति में आना भी चाहें तो उनके लिए मंज़िल अभी बहुत दूर नज़र आती है।

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