बोर होने से बचाने का पूरा इंतज़ाम होता है, यहाँ सामान बेचने के लिए हसीन सी आवाज़ें निकाल-निकाल कर राहगीरों का मनोरंजन किया जाता है! tongue emotico
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हम 50-55 प्रतिशत वोटिंग पर खुश हो जाते हैं और तर्क देते हैं कि यह पहले से ज़्यादा है और उस पर 20-30 प्रतिशत वोट लेने वाले प्रतिनिधि नियुक्त हो जाते हैं... पर क्या इतने कम वोटों से चुना गया व्यक्ति वाकई में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि इस सिनेरियो की जड़ में जाया जाए तो पता चलता है कि विजयी प्रत्याशी के समर्थकों की तुलना में विरोधी कई गुना ज़्यादा होते हैं?
सिर्फ विरोधियों को ही नहीं बल्कि मुसलामानों को भी ईधी साहब से सीखना चाहिए कि
दुनिया के शुरू से ही इस्लाम की बुनियाद तौहीद अर्थात "ला'इलाहा इल्लल्लाह" है, जिसका तात्पर्य है कि इस ब्रह्माण्ड की हर चीज़ कुछ भी करने में ईश्वर की मोहताज है! मतलब 'सूर्य' रौशनी देने या 'पृथ्वी' जीवन देने में उसके हुक्म के मोहताज है, क्योंकि पॉवर सेंटर केवल एक अल्लाह है... इसका मतलब यह हुआ कि बाकी चीज़ें प्रशंसनीय तो हो सकती हैं परन्तु पूजनीय नहीं!
उदहारण के लिए अगर हम सूर्य की प्रशंसा करते हैं कि इसमें उसके बनाने वाले की प्रशंसा भी स्वत: ही निहित हो जाती है पर अगर हम यह सोच कर चलते हैं कि सूर्य स्वयं में एक ताकत है जिससे हमें कोई फायदा पहुँच सकता है तो यह उसकी पूजा तथा उसके पावर सेंटर और क्रिएटर की अवहेलना हुई! अगर 'सृजन' (Creation) की प्रशंसा में 'सर्जक' (Creator) की भूमिका का भी एहसास है तो यह सही है पर अगर 'सृजन' की प्रशंसा करते समय उसे 'सर्जक' की उपमा दे दी जाए तो यह मिथ्या बात हुई!हज़रत मुहम्मद (स.) ने मालूम किया कि इस्लाम का सबसे मज़बूत अमल क्या है?आपके सहाबा (साथियों) ने जवाब दिया कि "नमाज़"आपने कह...
Posted by Shah Nawaz on Monday, April 6, 2015