skip to main |
skip to sidebar
व्यवस्था की नाकामी या फिर भेदभाव जैसे कारणों से उपजा गुस्सा एक स्वाभाविक क्रिया है... अगर बदलाव चाहते हैं तो इस गुस्से का दुरूपयोग करने की जगह सदुपयोग होना चाहिए... और सब्र से काम लेने वाला ही अपने गुस्से का सदुपयोग कर सकता है।
राजनीति जनता को सुनहरे ख्वाब दिखाना भर रह गयी है, जिसका हकीक़त से कोसो दूर का भी वास्ता नहीं होता... वैसे भी सोती हुई कौम को तो बस ख्वाब ही दिखाए जा सकते हैं, हकीक़त में हालात बदलने के लिए तो हमें जागना होगा, जिंदा कौम बनना होगा।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Copyright (c) 2010.
Chhotibat All Rights Reserved.
0 comments:
Post a Comment