मदरसों की शिक्षा में परिवर्तन आज की ज़रूरत है

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  • Shah Nawaz
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  • अगर माँ-बाप ने दुनियावी पढ़ाई के मरकज़ यानी स्कूल में दाखिला करा दिया और छात्र का जज़्बा आलिम या मुफ़्ती बनने का था तो नहीं बन सकता, ऐसे ही छात्र का दिल तो डॉक्टर / इंजिनियर / मार्केटिंग प्रोफेशनल / डिज़ाइनर इत्यादि बनने का था मगर माँ-बाप ने दाखिला दीनी मदरसे में कराया, इसलिए अब बेमन से वो पढाई कर रहे हैं जिसकी दिल से चाहत नहीं है। मतलब अभी तो सब पैरेंट्स की मर्ज़ी पर निर्भर है।

    इससे हाल यह हुआ कि क़ुरआन के हाफ़िज़ (सभी उसूलों के साथ शब्द दर शब्द याद करने वाले) कुछ और काम नहीं कर पाते और दुनियावी पढ़ाई करने वाले हफिज़ा नहीं। और यही वजह है कि आजकल जो माँ-बाप अपने बच्चों को मस्जिद के ईमाम या मुआज्ज़िन बनाना चाहते हैं, बस वहीँ उन्हें मदरसे में पढने भेजते हैं।



    कमीं मदरसों की पढ़ाई में नहीं बल्कि पढ़ाई के तरीके मे है, हमें अपने मदरसों की शिक्षा पद्धति में अमूल-चूल परिवर्तन लाना होगा... कुछ ऐसा जिससे कि डॉक्टर बनने की चाहत रखने वाला डॉक्टर, इंजिनियर की चाहत रखने वाला इंजिनियर, IAS बनने के ख्वाब देखने वाला IAS और इसी तरह आलिम या मुफ़्ती बनने का जज़्बा रखने वाला आलिम या मुफ़्ती बन सके


    मेरी कहने का मक़सद यह है कि बचपन में केवल सब्जेक्ट 'दीनियात' के साथ बेसिक पढाई हो और जब बच्चा सेकेंडरी एजुकेशन तक पढ़ ले तो ऐसी स्थिति में हो कि अपनी पसंद के अनुसार सब्जेक्ट चुन सके, चाहे तो आलिमत की पढ़ाई करे या फिर डॉक्टर/इंजिनियर या दीगर प्रोफेशनल कोर्सेस में जा कर अपने इल्म के एतबार से अपने मुस्तकबिल का फैसला लिया जा सके

    हमें ऐसा इंतज़ाम करना पड़ेगा जिसमें मौजूदा मदारिस डिग्री कॉलेज की तरह बनाए जाए, जहाँ आलिम और मुफ़्ती इत्यादि की पढ़ाई की जाएँ और अलग से नए मदारिस खोल कर हाफ़िज़े के साथ बेसिक शिक्षा की शुरुआत की जाए। जिससे कि आलिम या मुफ़्ती इत्यादि की डिग्री चाहने वाले छात्र अपनी मर्ज़ी से यह पढ़ाई कर सकें! अभी कोई भी आलिम अपनी मर्ज़ी से नहीं बल्कि वालिदैन की मर्ज़ी से बनता है, चाहे उसका दिल हो या ना हो 

    जबकि होना यह चाहिए कि 14-15 साल की उम्र तक सभी मदरसों में बेसिक शिक्षा के साथ हाफिज़ें की पढ़ाई होनी चाहिए, जिससे कि छात्र उसके बाद अपने इंटरेस्ट के मुताबिक़ मुस्तकबिल की पढ़ाई कर सके

    और परिवर्तन के लिए मदरसों की शिक्षा को किसी सोसाईटी या बोर्ड जैसी किसी संस्था के सिलेबस के अंतर्गत लाने की कोशिश होनी चाहिए।

    3 comments:

    1. बढ़िया विचार है

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    2. शिक्षित होना और शिक्षित होकर शिक्षित करना,सबसे ज्यादा जरूरी है,शिक्षा में सुधार जरूरी है ...

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    3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "प्यार का मोड़ और गूगल मॅप“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार

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