सजा का मकसद केवल दोषी को सुधारना नहीं होता

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  • Shah Nawaz
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  • यह एक गलत तर्क है कि सजा का मकसद केवल दोषी को सुधारना होता है, सजा का मकसद केवल दोषी को सुधारना नहीं बल्कि अन्य लोगो को गलत कार्य और उसके परिणाम के प्रति चेताना भी होता है। मतलब बुरे काम का बुरा नतीजा आना आवश्यक है। अगर बुरे काम के भी अच्छे नतीजे आने लगे तो हर कोई बुराई के रास्ते पर बिना झिझक चलेगा और यही आज हो भी रहा है। अपराधी सोचते हैं कि वह पकडे नहीं जाएँगे और अगर पकडे भी गए तो सालो-साल केस चलता रहेगा और अगर सजा हुई भी तो बहुत थोड़ी सी।

    हालाँकि यह भी सच है कि सिर्फ सज़ा देने भर ही अपराध कम नहीं हो पाएँगे, बल्कि हमें यह भी विचार करना होगा कि हमारे सामाजिक ताने-बाने में कहाँ कमी है? अगर हम विचार करेंगे तो कमियों को ढूंढकर उन्हें दूर करने के उपाय कर भी पाएंगे, वर्ना ज़िन्दगी इसी ढर्रे पर चलती रहेगी और हम दूसरों को दोष देकर इतिश्री पाते रहेंगे।

    जुर्म की रोज़ाना बढ़ती वारदातों का एक कारण समाज का आत्म केन्द्रित होना भी है, आज हर कोई अपने और अपने परिवार तक ही सीमित रहना चाहता है और यह सोच हमें संवेदनहीन बना रही है। जुर्म करते समय अक्सर लोग दूसरों को उससे होने वाले नुकसान या परेशानी के बारे में नहीं सोचते, बल्कि केवल अपने बारे में सोच रहे होते हैं और इसीलिए अक्सर दूसरों को बेहद ज़्यादा नुक्सान पहुंचाने में भी कोई परेशानी महसूस नहीं होती। इसलिए अगर हम एक विकसित समाज बनना चाहते हैं तो हमें आज समाज में घर कर गई इस तरह की बुराइयों और उनके परिणामों पर अध्यन करके उनका हल ढूंढना पड़ेगा। समाज में जुर्म को कम करने और न्याय की व्यवस्था करने के लिए यह बेहद ज़रूरी है।

    समाज में न्याय व्यवस्था के लिए बाकी उपायों के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित किया जाना बेहद ज़रूरी है कि न्याय जल्दी मिल पाए और सजा ऐसी होनी चाहिए कि दूसरे लोग अपराध करते हुए डरे।

    6 comments:


    1. समाज में न्याय व्यवस्था में यह भी सुनिश्चित किया जाना बेहद ज़रूरी है कि न्याय जल्दी मिल पाए और सजा ऐसी होनी चाहिए कि दूसरे लोग अपराध करते हुए डरे।
      सही कह रहे ।

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    2. न्याय त्वरित हो मिलने वाली सज़ा त्वरित हो।
      निठारी कांड के कोली को अब तक फाँसी नही हुई

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      1. बिलकुल सही कहा, उस सज़ा का फायदा ही क्या जो वक़्त निकलने पर मिले?

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    3. सही ... न्याययिक लचरता कम हो और समाज जागरूक | जागरूक होने का एक पक्ष एक दूजे से जुड़े रहना और सचेत रहना और सचेत करना भी है

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