कोरोना मामलों में मीडिया का धार्मिक दुष्प्रचार
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24 मार्च तक बहुत सारे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में लोग सरकारी प्रतिबंधों
के बावजूद आ-जा रहे थे और इस कारण लॉक डाउन होने पर फंस गए। क्योंकि तब तक
सरकार ही...
नास्तिक कट्टरता भी उतनी ही खतरनाक है
by Shah Nawaz
अक्सर नास्तिक भी अपनी आस्था की अंधभक्ति मे आस्तिक अंधभक्तों से ज़्यादा कट्टर बन जाते हैं। और इसी कारण यह दूसरों के तर्कों को कुतर्क की संज्ञा देकर अपने दिमाग़ से दूर छिटक देते हैं। विपरीत सोच रखने वालों की आस्था या विचार का मज़ाक बनाना, नफरत करना और अपनी राय को ज़बरदस्ती दूसरों पर थोपने का ही नाम कट्टरता है। और कट्टरता हक़ बात को किसी भी हाल में क़ुबूल नहीं करने देती।
सजा का मकसद केवल दोषी को सुधारना नहीं होता
by Shah Nawaz
हालाँकि यह भी सच है कि सिर्फ सज़ा देने भर ही अपराध कम नहीं हो पाएँगे, बल्कि हमें यह भी विचार करना होगा कि हमारे सामाजिक ताने-बाने में कहाँ कमी है? अगर हम विचार करेंगे तो कमियों को ढूंढकर उन्हें दूर करने के उपाय कर भी पाएंगे, वर्ना ज़िन्दगी इसी ढर्रे पर चलती रहेगी और हम दूसरों को दोष देकर इतिश्री पाते रहेंगे।
जुर्म की रोज़ाना बढ़ती वारदातों का एक कारण समाज का आत्म केन्द्रित होना भी है, आज हर कोई अपने और अपने परिवार तक ही सीमित रहना चाहता है और यह सोच हमें संवेदनहीन बना रही है। जुर्म करते समय अक्सर लोग दूसरों को उससे होने वाले नुकसान या परेशानी के बारे में नहीं सोचते, बल्कि केवल अपने बारे में सोच रहे होते हैं और इसीलिए अक्सर दूसरों को बेहद ज़्यादा नुक्सान पहुंचाने में भी कोई परेशानी महसूस नहीं होती। इसलिए अगर हम एक विकसित समाज बनना चाहते हैं तो हमें आज समाज में घर कर गई इस तरह की बुराइयों और उनके परिणामों पर अध्यन करके उनका हल ढूंढना पड़ेगा। समाज में जुर्म को कम करने और न्याय की व्यवस्था करने के लिए यह बेहद ज़रूरी है।
समाज में न्याय व्यवस्था के लिए बाकी उपायों के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित किया जाना बेहद ज़रूरी है कि न्याय जल्दी मिल पाए और सजा ऐसी होनी चाहिए कि दूसरे लोग अपराध करते हुए डरे।
सामाजिक न्याय और बराबरी के लिए एकजुट होकर संघर्ष करना पड़ेगा - स्वर्गीय डॉ. असग़र अली इंजीनियर
by Shah Nawaz
सामाजिक न्याय और बराबरी के लिए लड़ने वाले स्वर्गीय असग़र अली इंजिनियर साहब मुझ जैसे अनेकों के लिए प्रेरणास्त्रोत थे और हमेशा रहेंगे, उन्होंने अपनी सारी ज़िन्दगी गैर-बराबरी और धार्मिक कट्टरपंथ के विरुद्ध संघर्ष में बिता दी... असग़र अली इंजीनियर साहब ने इस्लाम और स्त्रियों के अधिकार, इस्लाम और विश्व शांति, इस्लाम और कौमी इखलास, इस्लाम और मानवता, इस्लाम और भारतीय लोकतंत्र जैसे विषयों पर अनेकों लेख लिखें। और वे लेखों के माध्यम से अपने संदेशों को भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में फैलाने के लिए आखिरी घड़ी तक काम करते रहे।
"हमारा संघर्ष यही होना चाहिए कि दुनिया में सामाजिक न्याय हो, भेदभाव खत्म हो, सबके साथ इंसाफ हो, सबकी जरूरतें पूरी हों। और हमें इस लड़ााई को लड़ते रहना है, सभी के साथ मिलकर, लगातार। ऐसा नहीं कि मैं सिर्फ इस्लाम के नाम पर लडूं, आप सिर्फ हिंदू धर्म के नाम पर लड़ें, कोई बौद्ध धर्म के नाम पर लड़े, नहीं। हम सबको साथ आना चाहिए। क्योंकि हम, आप और बाक़ी बहुत सारे यही कह रहे हैं कि सामाजिक न्याय हो, बराबरी हो, गैर बराबरी खत्म हो, जो इस गैर बराबरी को बढ़ावा देने वाले हैं उन सभी के खिलाफ हमें एकजुट होकर लड़ना होगा। यही देश भक्ति है और सबसे बड़ी इबादत भी।"
- स्वर्गीय डॉ. असग़र अली इंजीनियर
मदरसों की शिक्षा में परिवर्तन आज की ज़रूरत है
by Shah Nawaz
अगर माँ-बाप ने दुनियावी पढ़ाई के मरकज़ यानी स्कूल में दाखिला करा दिया और छात्र का जज़्बा आलिम या मुफ़्ती बनने का था तो नहीं बन सकता, ऐसे ही छात्र का दिल तो डॉक्टर / इंजिनियर / मार्केटिंग प्रोफेशनल / डिज़ाइनर इत्यादि बनने का था मगर माँ-बाप ने दाखिला दीनी मदरसे में कराया, इसलिए अब बेमन से वो पढाई कर रहे हैं जिसकी दिल से चाहत नहीं है। मतलब अभी तो सब पैरेंट्स की मर्ज़ी पर निर्भर है।
इससे हाल यह हुआ कि क़ुरआन के हाफ़िज़ (सभी उसूलों के साथ शब्द दर शब्द याद करने वाले) कुछ और काम नहीं कर पाते और दुनियावी पढ़ाई करने वाले हफिज़ा नहीं। और यही वजह है कि आजकल जो माँ-बाप अपने बच्चों को मस्जिद के ईमाम या मुआज्ज़िन बनाना चाहते हैं, बस वहीँ उन्हें मदरसे में पढने भेजते हैं।
कमीं मदरसों की पढ़ाई में नहीं बल्कि पढ़ाई के तरीके मे है, हमें अपने मदरसों की शिक्षा पद्धति में अमूल-चूल परिवर्तन लाना होगा... कुछ ऐसा जिससे कि डॉक्टर बनने की चाहत रखने वाला डॉक्टर, इंजिनियर की चाहत रखने वाला इंजिनियर, IAS बनने के ख्वाब देखने वाला IAS और इसी तरह आलिम या मुफ़्ती बनने का जज़्बा रखने वाला आलिम या मुफ़्ती बन सके।
मेरी कहने का मक़सद यह है कि बचपन में केवल सब्जेक्ट 'दीनियात' के साथ बेसिक पढाई हो और जब बच्चा सेकेंडरी एजुकेशन तक पढ़ ले तो ऐसी स्थिति में हो कि अपनी पसंद के अनुसार सब्जेक्ट चुन सके, चाहे तो आलिमत की पढ़ाई करे या फिर डॉक्टर/इंजिनियर या दीगर प्रोफेशनल कोर्सेस में जा कर अपने इल्म के एतबार से अपने मुस्तकबिल का फैसला लिया जा सके।
हमें ऐसा इंतज़ाम करना पड़ेगा जिसमें मौजूदा मदारिस डिग्री कॉलेज की तरह बनाए जाए, जहाँ आलिम और मुफ़्ती इत्यादि की पढ़ाई की जाएँ और अलग से नए मदारिस खोल कर हाफ़िज़े के साथ बेसिक शिक्षा की शुरुआत की जाए। जिससे कि आलिम या मुफ़्ती इत्यादि की डिग्री चाहने वाले छात्र अपनी मर्ज़ी से यह पढ़ाई कर सकें! अभी कोई भी आलिम अपनी मर्ज़ी से नहीं बल्कि वालिदैन की मर्ज़ी से बनता है, चाहे उसका दिल हो या ना हो।
जबकि होना यह चाहिए कि 14-15 साल की उम्र तक सभी मदरसों में बेसिक शिक्षा के साथ हाफिज़ें की पढ़ाई होनी चाहिए, जिससे कि छात्र उसके बाद अपने इंटरेस्ट के मुताबिक़ मुस्तकबिल की पढ़ाई कर सके।
और परिवर्तन के लिए मदरसों की शिक्षा को किसी सोसाईटी या बोर्ड जैसी किसी संस्था के सिलेबस के अंतर्गत लाने की कोशिश होनी चाहिए।
सरकार द्वारा विमर्श के मुद्दे तय करने की रणनीति और कमज़ोर विपक्ष
by Shah Nawaz
GDP गिर रही है, व्यापार का बुरा हाल है, सारा बाज़ार चंद कारोबारियों की मुट्ठी में पहुंचाया जा रहा है, नौकरियाँ खत्म हो रही हैं, जबरन टेक्स बढ़ाया जा रहा है, महंगाई रोज़ बढ़ रही है, इंफ्रास्ट्रक्चर में कुछ नया नहीं हुआ, सार्वजानिक शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हालात जस के तस बदतर हैं, फसलों के बेहद कम कीमत मिलने से किसान बदहाल है और आत्महत्याओं का दर्दनाक दौर लगातार जारी है, जातीय और धार्मिक नफरतों का बाज़ार गर्म किया जा रहा है, सारे पड़ौसी हमें आँखें दिखा रहे हैं, यहाँ तक नेपाल जैसा हमारा प्राकर्तिक और हमेशा से सहयोगी रहा देश भी...
पर यह सरकार जब भी कहीं फंस रही होती है तभी बाज़ार में भावुकता (Emotional) से ओतप्रोत एक नया मुद्दा उछाल देती है और विमर्श (Discussion) असल मुद्दों की जगह उस पर होने लगता है और इसके एवज़ में आम आदमी पिस रहा है पर विकल्प नहीं होने की वजह से बिखरा हुआ है। इस सरकार ने एक और काम किया और वोह यह कि मीडिया और सोशल मीडिया के द्वारा एक साथ इतनी चीज़ें चल रही हैं कि आम आदमी कन्फ्यूज़ (भ्रमित) है कि क्या सही है और क्या गलत। पहले सोशल मीडिया पर नकली अकॉउंट (Fake accounts) के द्वारा भ्रमित करने वाली जानकारियों, अभद्र भाषा और गलियों के प्रयोग से उसकी विश्वसनीयता (Credibility) को ख़त्म (kill) किया गया और फिर मीडिया की बोलती बंद की गई।
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(इमेज DNA से साभार) |
हम सब को मिलकर यह करना होगा कि देश को आगे ले जाने के लिए, धार्मिक, जातीय, मंदिर-मस्जिद के झगड़ों की जगह देश की तरक्की से सम्बंधित मुद्दों पर विमर्श की ज़रूरत है। किसानों के हालात कैसे सुधारे जाएं, हमारे छोटे, मंझोले और बड़े व्यापार कैसे प्रगति करें, नौकरियां कैसे बढ़ें, नारी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित हो, महंगाई पर कैसे काबू पाया जाए, हमारे शैक्षिक संस्थानों और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कैसे क्रांति लाई जाए, बिजली-पानी के मुद्दों को कैसे हल किया जाए, धार्मिक, सामूहिक और जातीय भेदभाव कैसे कम हो। और हमें भावुकता में बहकर नहीं बल्कि तार्किक तरीके से इन मुद्दों सरकार को घेरना होगा, उसे उसके वादे याद दिलाने होंगे और सरकार की असफलताओं (Failure) को सामने लाना होगा।
और जनसरोकार के इन असल मुद्दों को सशक्त तरीके से और लगातार उठाने वाले और विकास का सही और कामयाब मॉडल दिखाने वाले को जनता खुद बा खुद अपना नेता चुन लेगी।
- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी की कलम से
- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी की कलम से
नफ़रत पालने वाले
by Shah Nawaz
इन नफ़रत पालने वालों को
कहां परवाह है सत्य की
उन्हें बस नफरत है,
कुछ नामों से,
कुछ चेहरों से,
कुछ लिबासों से,
और अपने ख़िलाफ़
उठती हुई आवाज़ों से...
- शाहनवाज़ 'साहिल'
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
दोहरा रवैया या तानाशाही?
by Shah Nawaz
Ameeque Jamei को भाजपा विधायक ओ पी शर्मा ने मीडिया के सामने तथा आप पार्षद राकेश कुमार को भाजपा पार्षदों ने कैमरे के सामने मारा था, क्या कोई कार्यवाही हुई थी?
पर वहीँ दूसरी ओर एक शिकायत भर पर पुलिस दिल्ली के आम आदमी पार्टी के विधायक को प्रेस कॉन्फ्रेंस के बीच में से ही तकरीबन घसीटने के अंदाज़ में गिरफ्तार कर के ले गई!
बदलाव लाने के लिए जागना होगा
by Shah Nawaz
व्यवस्था की नाकामी या फिर भेदभाव जैसे कारणों से उपजा गुस्सा एक स्वाभाविक क्रिया है... अगर बदलाव चाहते हैं तो इस गुस्से का दुरूपयोग करने की जगह सदुपयोग होना चाहिए... और सब्र से काम लेने वाला ही अपने गुस्से का सदुपयोग कर सकता है।
राजनीति जनता को सुनहरे ख्वाब दिखाना भर रह गयी है, जिसका हकीक़त से कोसो दूर का भी वास्ता नहीं होता... वैसे भी सोती हुई कौम को तो बस ख्वाब ही दिखाए जा सकते हैं, हकीक़त में हालात बदलने के लिए तो हमें जागना होगा, जिंदा कौम बनना होगा।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
हत्या, मुआवज़ा और उसमें धार्मिक एंगल की शर्मनाक कोशिश
by Shah Nawaz

हालाँकि दिल्ली सरकार की 1 करोड़ रूपये की मदद वाली पॉलिसी केवल उन सरकारी कर्मचारियों के लिए है जो अपने कर्तव्य को निभाने के चलते मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं अथवा क़त्ल कर दिए जाते हैं। काश यह लोग इस तरह की मदद प्राप्त करने वालों की सूचि देख लेते तो शायद ऐसी घटिया सोच सामने नहीं लाते।
मुहम्मद मोईन ख़ान होटल 'द कनॉट' की लीज़ टर्म के फाइनल ऑर्डर पर हस्ताक्षर करने वाले थे, जिसके लिए उन्हें खरीदने की कोशिश हुई, धमकियां दी गईं पर जब वो नहीं झुके तो उनकी हत्या कर दी गई। हालाँकि यह जानकारी भी सामने आ रही है कि भाजपा नेता और NDMC के वाईस चैरयरमेन करण सिंह ने तंवर ने मोईन खान की हत्या से 11 दिन पहले LG नजीब जंग से उन्हें NDMC के असिस्टेंट लीगल एडवाइज़र के पद से हटाने की सिफारिश भी की थी और इस सिफारिश के चलते उनपर इस हत्याकांड में शामिल होने के आरोप भी लग रहे हैं।
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