किसी धार्मिक स्थल पर हमले का समर्थन घटिया सोच है?

विश्व हिंदू परिषद के संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन का तात्पर्य है कि चर्च तोड़कर हनुमान मूर्ति इसलिए रखी गई क्योंकि जिस गांव में चर्च पर हमला हुआ है उसमें या उसके आसपास कोई ईसाई नहीं रहता...


वैसे इन महाशय की पाकिस्तान में मंदिरों को तोड़ने वाली शर्मनाक घटनाओं पर क्या प्रतिक्रिया होती होगी?


यह कैसी सोच है कि धर्म स्थल जगह की उपलब्धता की जगह वहीँ बनाएं जाएं जहाँ उस समुदाय के लोग रहते हैं? और अगर कल को उक्त समुदाय के लोग किसी कारणवश पलायन कर जाएं तो क्या उनपर कब्ज़ा कर लिया जाना चाहिए या फिर तोड़-फोड़ जैसी शर्मनाक हरकत की जाए?

अगर दिल्ली की बात की जाए तो कई ऐसे ईसाई चर्च मैंने देखें हैं जहाँ आस-पास ईसाई नहीं रहते हैं, हो सकता है ऐसा जगह की उपलब्धता के कारण हो या कोई भी कारण हो, कोई कारण इस तरह तोड़फोड़ और मूर्ति स्थापित करने को जायज़ ठहरा भी नहीं सकता है।

हमारे देश में कानून है और हमें उसके हिसाब से ही चलना भी चाहिए, खासतौर विवादित जगहों पर टकराव की जगह प्रशासन को बीच में लाकर बातचीत होनी चाहिए।

वैसे भी बिना प्रशासन की अनुमति के तो वहां चर्च बना नहीं होगा। और अगर बिना अनुमति के बना हो, तब भी पहले क़ानूनी कदम उठाए जाने चाहिए थे।

हालाँकि मैं मानता हूँ कि उन्मादि भीड़ को नियंत्रित करना आसान नहीं है, पर मुद्दा यह है कि भीड़ ने वहां जो किया उसके विरोध किया जाना चाहिए या समर्थन।

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'चापलूस‬' व्यक्तित्व की दीमक होते हैं

जिस तरह ‪#‎दीमक‬ खामोशी के साथ हरे-भरे पेड़ को खोखला कर देती है, उसी तरह ‪#‎चापलूस‬ बड़े से बड़े व्यक्तित्व का नाश कर देते हैं।

देखा जाए तो ‪#‎आलोचक‬ ही असल ‪#‎शुभचिंतक‬ होते है!

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विकास में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए


देश और मुस्लिम समाज के लिए ज़रूरी है कि तरक़्क़ी की कोशिशो में महिलाओं की और भी ज़्यादा भागीदारी सुनिश्चित की जाए और यह उनको उनके हुक़ूक़ से महरूम रखकर पॉसिबल नहीं हो सकता।


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