आम है क्या?


एक तोता एक दूकानदार से मालूम करता है: लाला जी आम है क्या?
दुकानदार: नहीं! हम आम नहीं बेचते

अगले दिन फिर तोता मालूम करता है: लाला जी आम है क्या?
दुकानदार: अरे बोला था ना... हम आम नहीं बेचते

तीसरे दिन फिर तोता मालूम करता है: लाला जी आम है क्या?
दुकानदार खुन्नस में आकर कहता है: अगर अब बोला तो हथौड़ा मारूंगा!

चौथे दिन तोता मालूम करता है: लाला जी हथौड़ा है क्या?
दुकानदार: नहीं!
तोता: तो आम है क्या???
लाला जी हैरान...परेशान!!!

पांचवे दिन तोता फिर आ धमकता है: लाला जी आम है क्या?
लाला जी उसके मुंह पर हथौड़ा दे मारते हैं, तोते के दांत टूट कर बिखर जाते हैं!!!

छठे दिन तोता फिर से आ धमकता है
लाला जी तोते को बिना दांत के देखकर मुस्कराते हैं.... 

तोता धीरे से कहता है: लाला जी! 



आम का जूस है क्या???

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राष्ट्रमंडल खेल

शर्म का समय                                    या                                 गर्व का समय


मेहमान घर पर हैं...
और हम अपने घर का रोना
दुसरो के सामने रो रहे हैं
वह हमारे रोने पर हंस रहे हैं और
हम उनके हंसने पर खुश हो रहे हैं...


लड़ते तो हम हमेशा से आएं हैं
लेकिन समय हमेशा के लिए हमारे पास है
गलत बातों के विरुद्ध लड़ने के
नैतिक अधिकार की भी आस है

लेकिन.......
हमें फिर भी लड़ने की जल्द बाज़ी है,
क्योंकि मेहमान हमारे घर पर हैं
हमें बदनाम करने पर वह राज़ी हैं

सारा का सारा देश राजनीति का मारा है
'अभी नहीं तो कभी नहीं' हमारा नारा है

देश का क्या है?
जब पहले नहीं सोचा
तो अब ही क्यों?

 जय हो!





एक नज़र यहाँ भी: राष्ट्रमंडल खेलों के स्थल की तस्वीरें

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व्यंग्य: युवराज और विपक्ष का नाटक

हमारे युवराज जब भी गरीबों की बस्तियों में रात गुजारते हैं, तो विपक्ष बेचारे युवराज के पीछे पड़ जाता है और उनकी कुर्बानी को नाटक करार दे दिया जाता है. अब आप ही बताइए, किसी गरीब के घर पचास बार चैक करके बनाई गई दाल-रोटी खाना क्या किसी कुर्बानी से कम है? युवराज अगर महाराज बनने से पहले अपनी प्रजा की नब्ज़ को पहचानना चाहे तो क्या कोई बुराई है? अगर आज युवराज गरीबों की परेशानियों को जानेगे नहीं तो कल कैसे पता चलेगा कि आखिर गरीब लोग कितनी परेशानी झेल सकते हैं! (परेशानियाँ झेलने वाले की हिम्मत के अनुसार ही तो डालनी पड़ती हैं.) मेरे विचार से तो यह कोर्स हर उभरते हुए नेता को करना चाहिए. अरे! बुज़ुर्ग नेताओं को क्या आवश्यकता है? तजुर्बेकार नेतागण तो पहले ही खून चूसने में माहिर होते हैं! 

वैसे भी आज युवराज के पास समय है, तो समय के सदुपयोग पर इतना हो-हल्ला क्यों हो भला? यह सब आज नहीं करेंगे तो क्या कल करेंगे? कल जब महाराज बन जाएँगे तो फिर गरीब लोगों के लिए समय किसके पास होगा? फिर भला कैसे पता होगा कि कल्लू को अच्छे खाने की ज़रूरत ही नहीं है, वह बेचारा तो पतली दाल में भी बहुत खुश है.

- शाहनवाज़ सिद्दीकी

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आपकी आँखों से आंसू बह गए


आपकी आँखों से आंसू बह गए,
हर इक लम्हे की कहानी कह गए।

मेरे वादे पर था एतमाद तुम्हे,
और सितम दुनिया का सारा सह गए।

- शाहनवाज़ सिद्दीकी

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इंतज़ार

मुझे इंतज़ार है

साहिल को ढूँढती है, मेरी डूबती नज़र,
ना जाने कौन मेरा, समंदर के पार है।

शायद नहीं उस पार है, मेरी वफा-ए-ज़िन्दगी,
क्यूँ कर के फिर उस शख्स का, मुझे इंतज़ार है।





तेरे इंतज़ार में

नज़रें यह थक गई हैं, तेरे इंतज़ार में,
हर शै गुज़र गई है, तेरे इंतज़ार में।

आकर तो देख ले, मेरे बेचैन दिल का हाल,
कहीं जाँ ना निकल जाए, तेरे इंतज़ार में।


- शाहनवाज़ सिद्दीकी "साहिल"

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क्या अब आपका नंबर है?

एक 21 साला यौवना को तलाश है एक सुयोग्य वर की. आपको बताते चलते हैं कि वह 2000 करोड़ की संपत्ति की मालकिन है. :-)

अब सारा समय ख्वाब देखने में ही मत लगाइए, चलिए मैं आपको उसकी फोटो दिखा देता हूँ. जिसे देखकर आप स्वयं निर्णय ले सकते हैं कि...........

क्या अब आपका नंबर है? ;-)







परेशान क्यों हो रहे हैं? आगे भी बता रहा हूँ! इस युवती का नाम निशिता शाह है और यह फोर्ब्स में नाम पाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला हैं। फोर्ब्स पत्रिका दुनिया के सबसे रईस लोगों की सूची बनाती है। उसने निशिता को आगामी पीढ़ी की एशियाई अरबपतियों की 40 नाम वाली सूची में 19वें नंबर पर रखा है।

निशिता ने बोस्टन अमेरिका से बिजनस एडमिनिस्ट्रेशन का कोर्स पूरा किया है। उसके पास अपना प्लेन भी है और पायलट का लाइसेंस भी। सबसे दिलचस्ब बात यह है कि निशिता शाह को तलाश है मिस्टर राइट की।

निशिता मूलत: गुजरात मूल की है तथा उसका मशहूर "शाह परिवार" इस समय थाईलैंड में बसा है और वहां के सबसे रईस परिवारों में से एक है। इनके जीपी ग्रुप के बिज़नस में 44 विशाल शिप भी हैं। शाह परिवार मूलत: कच्छ का है। 1868 में यह मुंबई आ बसा था। इसके बाद यह परिवार 1918 में बैंकॉक में सेटल हो गया।

तीन संतानों में सबसे बड़ी निशिता कहती हैं कि उसके मां-बाप अब कहने लगे हैं कि वह शादी करके सेटल हो जाए। वहीँ वह सीक्रेट बताती हैं कि "मुझे अभी मेरा मिस्टर राइट नहीं मिला है।"




अर्रर्रर्र!!!!!!!!! थाईलेंड की ओर आराम से भागो यार......... लड़ क्यों रहे हो???????????

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इश्क़ की मंजिल



इश्क़ की मंजिल

महबूब नींद, माशूक ख़्वाब और इश्क़ रात की तरह है।
जिस तरह रात में नींद और ख़्वाब का मिलन अक्सर होता है,
उसी तरह आशिक़ और माशूक़ का मिलन भी रातनुमा इश्क़ में होता है।

मगर यह ज़रूरी नहीं कि हर रात की नींद में ख़्वाब आए!
इसी तरह आशिक़ों का मिलन भी हर इक की किस्मत मैं नहीं होता।



- शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'

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बाहर मानसून का मौसम है




बाहर मानसून का मौसम है,
लेकिन हरिभूमि पर
हमारा राजनैतिक मानसून
बरस रहा है।

आज का दिन वैसे भी खास है,
बंद का दिन है और हर नेता
इसी मानसून के लिए
तरस रहा है।


मानसून का मूंड है इसलिए
इसकी बरसात हमने
अपने ब्लॉग
प्रेम रस
पर भी कर दी है।

राजनैतिक गर्मी का
मज़ा लेना,
इसे पढ़ कर
यह मत कहना
कि आज सर्दी है!

मेरा व्यंग्य: बहार राजनैतिक मानसून की

- शाहनवाज़ सिद्दीकी "साहिल"

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विरोध का तरीका कैसा होना चाहिए?

विरोध करने के लिए विरोध करना भी आना चाहिए। अगर किसी को लगता है कि कोई बात गलत है, तो हो-हल्ला मचाने से पूर्व सबसे पहले उसके बारें में पूरी जानकारी हासिल करना चाहिए। इससे कई बातें सामने आ सकती हैं। जैसे कि:

1. हो सकता है कि जो हम सोच रहे हैं, वह बात बिलकुल वैसी ही निकले।

2. इस बात की भी पूरी संभावना है कि जो हम सोच रहे हैं, बात वैसी नहीं हो।

3. हर बात के अच्छे और बुरे पहलु हो सकते हैं, क्योंकि समय और समझ के हिसाब से हर बात का अलग महत्त्व होता है।

4. विरोधियों की और समर्थन करने वालो की बातों पर एकदम से पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए. क्योंकि विरोधी अक्सर अच्छी बातों का भी विरोध करते हैं, वहीँ समर्थक बुरी बातों का भी समर्थन करते हैं।

5. बल्कि सही रास्ता तो यही है, कि विरोधियों और समर्थकों की बातों का तथा सम्बंधित विषय का पूरी तरह से अध्यन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए।

6. सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है, कि सिक्के का एक ही पहलु देखने की जगह बात अगर किसी से सम्बंधित है तो उसके विचारों का भी अध्यन करना चाहिए।


- शाहनवाज़ सिद्दीकी

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कुछ खुशियाँ बेकरार सी हैं




मायूस शब
ढलने के बाद,
ढेरों आशाएं
समेटे हुए,
नई सहर
इंतज़ार में हैं।


अपने जोश को
समेट कर रखिए,
इस्तक़बाल के लिए
कुछ खुशियाँ
बेकरार सी हैं।

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