फिर कोई ‪‎कुत्ता‬, कोई कुत्ते का पिल्ला हो गया...

क्या कहूँ हाकिम का यूँ ज़मीर ढिल्ला हो गया

मिंटो-सेकिंडो में ही हर शेर बिल्ला हो गया


इन्तख़ाबों में तो थे हम 'आँख के तारे' सभी

फिर कोई ‪‎कुत्ता‬, कोई कुत्ते का पिल्ला हो गया


- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी

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हमारे देशप्रेम का इससे बढ़कर और क्या सबूत होगा कि हमने देश से मुहब्बत को 'चुना' है!

जिन्होंने पाकिस्तान माँगा उन्हें दिया गया और वोह चले गए, जिन्हें देश से मुहब्बत थी उन्होंने ना माँगा और ना ही मांगने वालों का साथ दिया... और यह इस बात का सबूत भी है क्योंकि जो भी मुसलमान हिन्दुस्तान में रुके उन्होंने देश से मुहब्बत को चुना है, जबकि हम पर संदेह के ज़हर भरे तीर चलाने वाले और राष्ट्रद्रोह की डिग्रियां बांटने लोगों की देश के प्रति निष्ठा जानने के लिए बस उनके अलफ़ाज़ ही काफी हैं। 

हैरत की बात यह भी है कि दूसरों को देशद्रोही ठहरने वालों का देश की आज़ादी में कोई योगदान भी नहीं है, जबकि हमारे बुज़ुर्गों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ जिहाद छेड़ा था, उनके हाथों अपने सर कलम करवाना मंज़ूर किया था लेकिन झुकना हरगिज़ मंज़ूर नहीं किया था.

इस मौज़ूं पर राहत इंदौरी साहब ने क्या खूब लिखा है:
सभी का ख़ून है शामिल यहां कि मिट्टी में,
किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है

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अभिजीत ने दिखाया है गुलाम अली से भाईचारा :P


गायक अभिजीत के द्वारा गुलाम अली साहब को बेशर्म और डेंगू के मच्छर कहने पर नाराज़ मत होइए... ऐसा तो अक्सर होता है कि लोग 'दूसरों' को 'खुद' की तरह समझते हैं, मेरे भाई इसे ही तो '‎भाईचारा'‬ कहते हैं... :P 




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