जिन्होंने पाकिस्तान माँगा उन्हें दिया गया और वोह चले गए, जिन्हें देश से मुहब्बत थी उन्होंने ना माँगा और ना ही मांगने वालों का साथ दिया... और यह इस बात का सबूत भी है क्योंकि जो भी मुसलमान हिन्दुस्तान में रुके उन्होंने देश से मुहब्बत को चुना है, जबकि हम पर संदेह के ज़हर भरे तीर चलाने वाले और राष्ट्रद्रोह की डिग्रियां बांटने लोगों की देश के प्रति निष्ठा जानने के लिए बस उनके अलफ़ाज़ ही काफी हैं।
हैरत की बात यह भी है कि दूसरों को देशद्रोही ठहरने वालों का देश की आज़ादी में कोई योगदान भी नहीं है, जबकि हमारे बुज़ुर्गों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ जिहाद छेड़ा था, उनके हाथों अपने सर कलम करवाना मंज़ूर किया था लेकिन झुकना हरगिज़ मंज़ूर नहीं किया था.
सभी का ख़ून है शामिल यहां कि मिट्टी में,
किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी...
आप ने लिखा...
कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
दिनांक 25/10/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
पांच लिंकों का आनंद पर लिंक की जा रही है...
इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
कुलदीप ठाकुर...