
हमारा समाज हमेशा से पुरुष प्रधान रहा है और इसी पुरुष प्रधान समाज ने धर्मों को अपनी सहूलत के एतबार से इस्तेमाल किया, जहाँ दिल किया वहीँ कृतिम डर दिखा कर नियमों को ऐसे तब्दील कर दिया कि पता भी नहीं चले कि असल क्या है और नक़ल क्या। यहाँ तक कि बड़े से बड़ा दीनदार (धार्मिक व्यक्ति) भी यह सब इसलिए सहता...