इश्क़ की मंजिल
महबूब नींद, माशूक ख़्वाब और इश्क़ रात की तरह है।
जिस तरह रात में नींद और ख़्वाब का मिलन अक्सर होता है,
उसी तरह आशिक़ और माशूक़ का मिलन भी रातनुमा इश्क़ में होता है।
मगर यह ज़रूरी नहीं कि हर रात की नींद में ख़्वाब आए!
इसी तरह आशिक़ों का मिलन भी हर इक की किस्मत मैं नहीं होता।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'
So Nice!
ReplyDeleteBahut hi khoobsurat baat shahji
ReplyDeleteBahut hi khoobsurat baat shahji
ReplyDeleteBahut hi khoobsurat baat shahji
ReplyDeleteब्लागर की तक़दीर ज़माने से उलट होती है । जगता है ब्लागर जब दुनिया सोती है ॥ दिन में ही हक ए माशूक़ यूँ अदा करता है । ताकता है ऊपर कि ज़मीं आसमान होती है ॥
ReplyDeleteइस अमल का नाम है - वस्ल ए माशूक़ बशक्ल ए माकूस । किसी ने आज़माया हो तो बताओ ?
ReplyDeleteSahi farmaya! ;)
ReplyDeleteवस्ल ए माशूक़ बशक्ल ए माकूस..... Kya baat hai anwar ji............
ReplyDeletesundar kavita!
ReplyDeleteKAMAAL KA ANDAAZ HAI MIAN !! NAZM KHOOB RAHI.
ReplyDeleteAlag andaaz...sochne ka bhi aur kehne ka bhi...
ReplyDeleteYU TOH TAMANNAO KI TASVEER HAR KOI SAJATA H...PAR PATA WAHI H JO TAQDEER SATH LATA H....
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