मुझे इंतज़ार है
साहिल को ढूँढती है, मेरी डूबती नज़र,
ना जाने कौन मेरा, समंदर के पार है।
शायद नहीं उस पार है, मेरी वफा-ए-ज़िन्दगी,
क्यूँ कर के फिर उस शख्स का, मुझे इंतज़ार है।
तेरे इंतज़ार में
नज़रें यह थक गई हैं, तेरे इंतज़ार में,
हर शै गुज़र गई है, तेरे इंतज़ार में।
आकर तो देख ले, मेरे बेचैन दिल का हाल,
कहीं जाँ ना निकल जाए, तेरे इंतज़ार में।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी "साहिल"
आप कारोबार में जितना ज़्यादा मेहनत करते हैं उतना ही कम कमाते हैं
-
जब आप अपने कारोबार में ज़्यादा मेहनत करते हैं तो उसके दो नुकसान होते हैं,
एक तो कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए ज़रूरी नेटवर्क को बनाने के साथ-साथ बाकी
कारो...
bahoot khoob !
ReplyDeletewaise ab intezaar khatm samjhen !!!!!!@@@
नज़रें यह थक गई हैं, तेरे इंतज़ार में,
ReplyDeleteहर शै गुज़र गई है, तेरे इंतज़ार में।
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KHOOB....
नज़रें यह थक गई हैं, तेरे इंतज़ार में,
ReplyDeleteहर शै गुज़र गई है, तेरे इंतज़ार में।
आकर तो देख ले, मेरे बेचैन दिल का हाल,
कहीं जाँ ना निकल जाए, तेरे इंतज़ार में।
Mast gazal hai Shahnawajji..... lekin inzaar kiska hai?????
is blog ka naam छोटी बात kyon rekha hai? Kyonki baate to badi likhi hain.
ReplyDeleteसुमित जी,
ReplyDeleteछोटी बात से मेरा मतलब कम शब्दों वाला या फिर हलके-फुल्के लेख से है. हालाँकि अक्सर छोटी बात के मायने बड़े ही हुआ करते हैं :-)
आकर तो देख ले, मेरे बेचैन दिल का हाल,
ReplyDeleteकहीं जाँ ना निकल जाए, तेरे इंतज़ार में।
वाह दोस्त बीते हुवे दिन याद आने को है !
गज़ब !
शानावाज़ भी तफरी में है !
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteशाह जी अधिक इन्तजार नहीं करना चाहिए..... लगता है गुज़रे जमाने की झांकी हैं यह.
ReplyDeleteदोनों शेर बहुत अच्छे है.
अरे आप का इंतज़ार अभी तक ख़त्म नहीं हुआ.
ReplyDeleteइंतज़ार तो ऐसे ही होता है...बढ़िया ग़ज़ल...बधाई
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल
ReplyDeleteBadhia hai
ReplyDeleteबहुत बढिया!
ReplyDeleteवह बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteदोनो गजले बहुत पसंद आई अति सुंदर जी.
ReplyDeleteशाहनवाज़ भाई, सचमुच इंतज़ार में एक अलग ही मज़ा है।
ReplyDelete--------
ये साहस के पुतले ब्लॉगर।
व्यायाम द्वारा बढ़ाएँ शारीरिक क्षमता।
बहुत बढिया...
ReplyDeletehar pankti ..'waah' ke kabil hai :)
ReplyDeleteतस्वीर ही काफी थी। कुछ न कहते,तब भी चलता।
ReplyDeleteKHOOB SHAYAR SAHAB !!
ReplyDeleteलाजवाब । आपको स्वतंत्रता दिवस की ढेरों शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteआकर तो देख ले, मेरे बेचैन दिल का हाल,
ReplyDeleteकहीं जाँ ना निकल जाए, तेरे इंतज़ार में
सुभानाल्लाह ..!
जीव हत्या के संधर्भ में मेरे ब्लॉग http://siratalmustaqueem.blogspot.com/ पर आ कर यौगेश मिश्र की एक रिपोर्टः पढ़कर अपनी राय देने की कृपा करें ।
ReplyDeleteरक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! शानदार पोस्ट!
achha likha hai aapne
ReplyDelete.
ReplyDeleteइंतज़ार में जो मज़ा है वो दीदारे यार में नहीं...
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शरीफ़ साहब आपकी "वेदकुरान" के लेख (Abut Namaz on Road ) पर दी गयी टिपण्णी से असहमत होकर लिख रहा हूँ,
ReplyDelete"हज़रत इब्ने उमर ( रज़ि० ) फ़रमाते हैं कि अल्लाह के रसूल ( सल्ल० ) ने 7 जगहों पर नमाज़ पढ़ने से मना फ़रमाया है।
(1) नापाक जगह ( कूड़ा गाह )
(2) कमेला ( जानवरों को ज़िबह करने कि जगह )
(3) क़ब्रिस्तान
(4) सड़क और आम रास्तों में
(5) गुसल खाना
(6) ऊंट के बाड़े में
(7 ) बैतुल्लाह कि छत पर " ( तिर्मज़ी)
इस हदीस में नमाज़ का ज़िक्र किया गया है ( जुमे की नमाज़ का भी)
एक और हदीस है कि फैसले के दिन मोमिन के तराज़ू में जो अमल रखे जाएँगे, तो उनमें सबसे वज़नी अमल ( अखलाकी अमल ) होगा।
सड़क या आम रास्ता रोक कर किसी भी तरह की इबादत करना कैसे अखलाकी अमल हो सकता है?
हमारे देश में सड़कों तक दुकान लगाना, सड़क पर ठेला लगाना आदि-आदि को अतिक्रमण कहा जाता है और उनके ख़िलाफ़ अभियान चलाया जाता है, हालंकि वे लोग भी अपनी रोज़ी रोटी कमाने की खातिर करते हैं कोई गुनाह नहीं करते फिर भी उनके इस कार्य से आम आदमी के मानवाधिकार का हनन होता है, और मानवाधिकार की बुनियाद इस्लाम है,
इससे यह साबित होता है की सड़क रोक कर नमाज़ पढ़ना चाहे एक बार हो या अनेक बार अखलाक़ी अमल नहीं हो सकता।
और इस्लाम का प्रचार करना कोई वाहवही लूटना नहीं होता।
हमारे लिए कुरआन और हदीस की दलील हुज्जत है, किसी आदमी का निजी विचार या अमल नहीं।
अपने विचार के हक में कुरआन और हदीस से दलील देना आपकी दिनी ज़िम्मेदारी है।
यहाँ मेरा मक़सद आपके दिल को किसी तरह की ठेस पहुँचाना नहीं है। आप मेरे बुज़ुर्ग हैं आपका एहतराम करना मेरा फ़र्ज़ है ।
दोनों रचनाएँ अच्छी लगीं ......
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर।