
किसी भी बात पर अड़ने के मैं पहले भी खिलाफ था, हमारा काम प्रदर्शन करना, लोगो को जागरूक करना, सरकार को अपने मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने के लिए विवश करना होना चाहिए. सरकार जो भी कार्य करती है उसके अच्छे या बुरे परिणामों पर उसकी ज़िम्मेदारी होती है, इसलिए संविधानी मर्यादाओं के अंतर्गत उसे किसी भी फैसले को करने या करने का हक़ होना चाहिए... साथ ही साथ जनता में भी जागरूक होकर अपने खिलाफ फैसले करने वाली सरकार को उखाड फैकने का माद्दा होना चाहिए.
राजनैतिक सिस्टम को सुधारने का यही एकमात्र तरीका है...
सौ सुनार की एक लुहार की ,एक मौक़ा "क्रेन बेदी "को भी दो जिसने इंदिराजी की गाडी उठवा दी थी .अन्ना जी को दो जिनके मान का इतना दबदबा है कि सरकार और उसके मौन सिंह कोई "अन्न "भी कहे तो "अन्ना" समझ भाग खड़े होतें हैं .अभी तो नौ अगस्त को ताउजी (रामदेव ) आ रहें हैं "हर हर महादेव ...'"दिल्ली की हो खैर ......
ReplyDeleteसौ सुनार की एक लुहार की ,एक मौक़ा "क्रेन बेदी "को भी दो जिसने इंदिराजी की गाडी उठवा दी थी .अन्ना जी को दो जिनके मान का इतना दबदबा है कि सरकार और उसके मौन सिंह कोई "अन्न "भी कहे तो "अन्ना" समझ भाग खड़े होतें हैं .अभी तो नौ अगस्त को ताउजी (रामदेव ) आ रहें हैं "हर हर महादेव ...'"दिल्ली की हो खैर ......
"टीम अन्ना का राजनीति में स्वागत है "
राजनीति में आइये, स्वागत है श्री मान
ReplyDeleteसंसद में पहुचकर,फरमाइए फिर फरमान,,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,
यह उनका हक है... फैसला सही है या गलत यह अलग प्रश्न है...
ReplyDeleteसही कहा सतीश भाई...
ReplyDeleteस्वागत होना चाहिए फैसले का....
ReplyDeleteसादर।
संक्षिप्त किंतु संतुलित आलेख के लिए बधाई।
ReplyDeleteज़रूर स्वागत होना चाहिए।
डर केवल इसी का है कि 1975 में भी एक संत ने राजनीति के सुधार का आंदोलन चलाया और सत्ता परिवर्तन भी कर के दिखा दिया और छोड़ दिया देश के उन्हीं राजनीतिकों के हवाले जो न देश की दशा सुधार सके न दिशा दे पाए। इस बार भी संत ख़ुद कह रहा है कि वह राजनीति में नहीं आएगा ...