GDP गिर रही है, व्यापार का बुरा हाल है, सारा बाज़ार चंद कारोबारियों की मुट्ठी में पहुंचाया जा रहा है, नौकरियाँ खत्म हो रही हैं, जबरन टेक्स बढ़ाया जा रहा है, महंगाई रोज़ बढ़ रही है, इंफ्रास्ट्रक्चर में कुछ नया नहीं हुआ, सार्वजानिक शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हालात जस के तस बदतर हैं, फसलों के बेहद कम कीमत मिलने से किसान बदहाल है और आत्महत्याओं का दर्दनाक दौर लगातार जारी है, जातीय और धार्मिक नफरतों का बाज़ार गर्म किया जा रहा है, सारे पड़ौसी हमें आँखें दिखा रहे हैं, यहाँ तक नेपाल जैसा हमारा प्राकर्तिक और हमेशा से सहयोगी रहा देश भी...
पर यह सरकार जब भी कहीं फंस रही होती है तभी बाज़ार में भावुकता (Emotional) से ओतप्रोत एक नया मुद्दा उछाल देती है और विमर्श (Discussion) असल मुद्दों की जगह उस पर होने लगता है और इसके एवज़ में आम आदमी पिस रहा है पर विकल्प नहीं होने की वजह से बिखरा हुआ है। इस सरकार ने एक और काम किया और वोह यह कि मीडिया और सोशल मीडिया के द्वारा एक साथ इतनी चीज़ें चल रही हैं कि आम आदमी कन्फ्यूज़ (भ्रमित) है कि क्या सही है और क्या गलत। पहले सोशल मीडिया पर नकली अकॉउंट (Fake accounts) के द्वारा भ्रमित करने वाली जानकारियों, अभद्र भाषा और गलियों के प्रयोग से उसकी विश्वसनीयता (Credibility) को ख़त्म (kill) किया गया और फिर मीडिया की बोलती बंद की गई।
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(इमेज DNA से साभार) |
इस सबकी वजह है कमज़ोर विपक्षी नेतृत्व और इसके साथ-साथ सोशल एक्टिविस्ट, पत्रकार, लेखक और आम जनता भी है, जो कि भावुक मुद्दे (Emotional issues) सामने आने पर विमर्श के असल मुद्दों से भटक जाते हैं।
हम सब को मिलकर यह करना होगा कि देश को आगे ले जाने के लिए, धार्मिक, जातीय, मंदिर-मस्जिद के झगड़ों की जगह देश की तरक्की से सम्बंधित मुद्दों पर विमर्श की ज़रूरत है। किसानों के हालात कैसे सुधारे जाएं, हमारे छोटे, मंझोले और बड़े व्यापार कैसे प्रगति करें, नौकरियां कैसे बढ़ें, नारी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित हो, महंगाई पर कैसे काबू पाया जाए, हमारे शैक्षिक संस्थानों और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कैसे क्रांति लाई जाए, बिजली-पानी के मुद्दों को कैसे हल किया जाए, धार्मिक, सामूहिक और जातीय भेदभाव कैसे कम हो। और हमें भावुकता में बहकर नहीं बल्कि तार्किक तरीके से इन मुद्दों सरकार को घेरना होगा, उसे उसके वादे याद दिलाने होंगे और सरकार की असफलताओं (Failure) को सामने लाना होगा।
और जनसरोकार के इन असल मुद्दों को सशक्त तरीके से और लगातार उठाने वाले और विकास का सही और कामयाब मॉडल दिखाने वाले को जनता खुद बा खुद अपना नेता चुन लेगी।
- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी की कलम से