मुझे लगता है कि बिहार में भाजपा की इस हार में 'असंवेदशीलता', 'आरक्षण', 'अमित शाह' और 'अखलाक़' ने मुख्य भूमिका निभाई। मतलब भाजपाई नेताओं की असंवेदनशील भाषणबाज़ी, आरक्षण के विरुद्ध मोहन भगवत का बयान, अमित शाह की घमंड भरी भाषा और अखलाक़ की मौत की सियासत...
मैं नितीश को एक अच्छा व्यक्ति मानता हूँ, मगर आरजेडी का ज़्यादा सीट लाना बिहार के लिए चिंतनीय प्रतीत हो रहा है। हालाँकि जनादेश के बाद लालू जी से भी अब यही उम्मीद करनी चाहिए कि वोह उसी तरह बिहार की प्रगति में सहायक बनेंगे जैसे उन्होंने भारतीय रेलवे की प्रगति में अभूतपूर्व भूमिका निभाई थी।
इस चुनाव से यह सीख भी मिलती है कि आज के नए दौर में नेगेटिव पॉलिटिक्स वहीँ कारगर हो सकती है जहाँ जनता किसी के खिलाफ हो! जैसा कि लोकसभा चुनाव में जनता ने कांग्रेस के खिलाफ नेगेटिव प्रोपेगेंडा को पसंद किया था, मगर जहाँ लोग किसी के खिलाफ नहीं हैं वहां इस तरह की नेगेटिव स्ट्रेटेजी का यही हाल होना था जो पहले दिल्ली में केजरीवाल और अब बिहार में नितीश कुमार के खिलाफ भाजपाई स्ट्रेटेजी का हुआ।
आज भाजपा में मोदी की स्थिति उस समय की क्रिकेट टीम में सचिन जैसी हो गई है, जहाँ सचिन के ऊपर पूरी टीम डिपेंड हो गई थी और जब वोह अच्छा करते थे तो टीम जीत जाती थी वर्ना हार जाया करती थी।
नफरत के द्वारा सत्ता हथियाने की कोशिशों का हारना अच्छी पहल है, वर्ना देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण मुद्दा बनता और करप्शन ख़त्म करना तथा तरक्की की ओर बढ़ना नामुमकिन होता चला जाता।
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