असहिष्णुता नई नहीं है बल्कि सरकार का रवैया नया है....

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  • Shah Nawaz
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  • रामगोपाल वर्मा और अनुपम खेर साहब के कहने का मतलब है कि अगर एक "हिन्दू बहुल राष्ट्र" में कोई 'मुस्लिम' एक कामयाब 'फिल्म स्टार' बन सकता है तो वहां "कुलबुर्गी, पानसरे जैसे लेखकों की हत्या और बाकी लेखकों को इन जैसा हश्र करने", "गाय के मांस खाने के नाम पर मारे जाने वाली घटनाएं", "छेड़खानी / धर्मपरिवर्तन की झूठी अफवाहें उड़ाकर" / "सांसदों, विधायकों के द्वारा व्हाट्सऐप इत्यादि के द्वारा भावनाएं भड़काकर", "सूअर / गाय के मांस के मंदिरों / मस्जिदों में मिलने पर होने वाले दंगों की बातें", "धर्म के नाम पर मकान / दूकान का ना मिलना", 'एक-दूसरे समुदाय के खिलाफ नफ़रत के कारण अलग-अलग बस्तियां बनाकर रहने" जैसी बातें ना केवल सरासर झूठी बल्कि मीडिया के द्वारा फैलाई साज़िशें होती हैं...

    इसलिए सरकार को ऐसी घटनाओं को संज्ञान में नहीं लेना चाहिए, प्रधानमंत्री महोदय को ऐसी घटनाओं अथवा नफरत फैलाने के आरोपी नेताओं / विधायकों / सांसदों के खिलाफ सख्त सन्देश देने की कोई ज़रूरत ही नहीं है? 

    हालाँकि यह सही है कि असहिष्णुता केवल पिछले अट्ठारह महीनों में नहीं आई है, जो आज असहिष्णु दिखाई दे रहे हैं वोह पहले से ही ऐसे हैं... फ़र्क़ सिर्फ इतना आया है कि मोदी सरकार यह मैसेज देने में फेल हुई है कि वह नफ़रत फैलाने वाले कट्टरपंथियों या फिर देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नुकसान पहुंचाने वालों के ख़िलाफ़ है और उनसे सख्ती से निपटा जाएगा। जनता में इस विषय पर सरकार का गंभीर ना होने का मैसेज भी इसलिए गया क्योंकि पिछले कुछ महीनों में नफ़रत फैलाने वाले अधिकतर बयान भाजपा या फिर भाजपा समर्थक संगठनों के नेताओं की तरफ़ से आए हैं।

    हर सरकार का काम आपसी सौहार्द को बढ़ावा देना, नफरत फैलाने वालों से सख्ती से निपटना और कानून का पालन ना करने वालों से सख्ती से निपटना होता है और हमें देश की सरकार से यह उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाले समय पर वह उचित कदम उठाएगी! सरकार को यह चाहिए कि वह उससे यह उम्मीद या मांग करने वालों की मांग पर गंभीरता से विचार करे और यह सुनिश्चित करें कि वह देश को सुरक्षा का माहौल देने की अपनी प्रतिबद्धता का पूरी तरह से निर्वाहन करती रहेगी.

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