सिर्फ विरोधियों को ही नहीं बल्कि मुसलामानों को भी ईधी साहब से सीखना चाहिए कि
इस्लाम इंसानी हुक़ूक़ को ज़यादा अहमियत देना सिखाता है। दूसरों के हक़ अता करना और अपने हुक़ूक़ माफ़ करना सिखाता है... धैर्य, क्षमा और न्याय का हुक्म देता है। ईधी साहब के मानवता के सन्देश पर सिर्फ वाहवाही करने की नहीं बल्कि आत्मसात करने की ज़रूरत है!
मुहम्मद (स.) फरमाते हैं (व्याख्या) 'जिसने मुस्लिम राष्ट्र में किसी ग़ैर-मुस्लिम नागरिक के दिल को ठेस पहुंचाई, उसने मुझे ठेस पहुंचाई' और एक जगह कहते हैं कि वह न्याय के दिन ऐसे लोगो के विरोधी होंगे" (बुखारी)
और क़ुरआन में अल्लाह ने बताया "...किन्तु जिसने धैर्य से काम लिया और क्षमा कर दिया वह उन कामों में से हैं जो (सफलता के लिए) 'आवश्यक' ठहरा दिए गए हैं। [42:43]"
सही कहा
ReplyDelete