मासूमों के क़त्ल को किसी भी वजह से जायज़ ठहराना आतंकवाद का खुला समर्थन है... बहाने बताकर जायज़ ठहराने वालों की धूर्तता को पहचान लो, जाने-अनजाने यही लोग आतंक के पोषक हैं। बेगुनाहों के क़त्ल पर अगर-मगर करने वालों से दूरी बनाओ वर्ना पछताने का भी समय नहीं मिलेगा।
नफरत और आतंक एक-दूसरे के पूरक हैं, इसलिए अगर इंसानियत को बचाना है तो नफ़रत और आतंक के ख़िलाफ़ पूरे विश्व को एकजुट होना पड़ेगा। आज एक होने की ज़रूरत है, एकजुट होकर लड़े बिना इंसानियत के हत्यारों को समाप्त करना नामुमकिन है।
मेरा-तुम्हारा नहीं चलेगा, इंसाफ का तकाज़ा ही यह है कि बेगुनाहों के हर हत्यारों को उनके कुकर्म की सज़ा मिलनी चाहिए और आतंक का खत्म इसके बिना हो भी नहीं सकता है... हर तरह के आतंक का सफाया करना ज़रूरी है, फिर चाहे किसी संगठन के द्वारा चलाया जा रहा हो या फिर किसी देश के द्वारा पोषित हो।
मगर आतंक के खात्मे के लिए सजा गुनाहगारों को ही मिलनी चाहिए, इसके लिए आम लोगों पर मिसाइलें गिरा कर उनकी हत्याओं की इजाज़त भी नहीं होनी चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि फ़्रांस के बेगुनाहों की मौत का बदला सीरिया के बेगुनाहों की हत्या करके नहीं लिया जा सकता और ना ही लिया जाना चाहिए!
मगर आतंक के खात्मे के लिए सजा गुनाहगारों को ही मिलनी चाहिए, इसके लिए आम लोगों पर मिसाइलें गिरा कर उनकी हत्याओं की इजाज़त भी नहीं होनी चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि फ़्रांस के बेगुनाहों की मौत का बदला सीरिया के बेगुनाहों की हत्या करके नहीं लिया जा सकता और ना ही लिया जाना चाहिए!
#CondemnParisAttack #CondemnAllTerrorism
नफरत और आतंक एक-दूसरे के पूरक हैं, इसलिए अगर इंसानियत को बचाना है तो नफ़रत और आतंक के ख़िलाफ़ पूरे विश्व को एकजुट होना पड़ेगा। आज एक होने की ज़रूरत है, एकजुट होकर लड़े बिना इंसानियत के हत्यारों को समाप्त करना नामुमकिन है। ...एकदम सटीक बात ...
ReplyDeleteशुक्रिया कविता जी
Deleteआंतकी विचारधारा के समर्थक धर्म का कचरा करने में लगे हुए हैं। मुसलमान कौम के बारे में तो यहां तक कहा जाने लगा है कि मुसलमान इंसानियत और तरक्की के दुश्मन हैं।
ReplyDeleteइसके बारे में हमें आज सोच-विचार करने की ज़रूरत है!
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