बिना तथ्य के आरोप लगाने से किसको फायदा?

Posted on
  • by
  • Shah Nawaz
  • in
  • कानून मंत्री  की प्रेस कांफ्रेंस के बाद मुझे इस बात में कोई संदेह नज़र नहीं आता है कि उनके ट्रस्ट ने विकलांगों को सामान बांटने के लिए कैम्प लगाए. हालाँकि हस्ताक्षर असली हैं या नकली यह साबित होना बाकी है. इसलिए मैं अपने फेसबुक स्टेटस को वापिस लेता हूँ जिसमें मैंने कहा था कि -

     

    Shah Nawaz
    Yesterday

    विकलांगों को भी नहीं बख्शते सत्ताधीश... आम आदमी की तो बिसात ही क्या!




    हालाँकि कोई और तथ्य सामने आएगा तो इस स्टेटस पर भी विचार किया जा सकता है।

    साथ ही मैं आरोप लगाने वालों से अनुरोध करता हूँ कि बिना जल्दबाजी के तथा तथ्यों की पूरी जांच-परख करके ही किसी पर कोई आरोप लगाएँ जाएँ। सियासी नफा-नुक्सान के लिए हलके स्तर के आरोप लगाना सियासी लोगो का काम है और इसी कारण उनपर जल्दी से कोई विश्वास नहीं करता है। इस तरह के तथ्य रहित आरोपों से उल्टा सियासतदानों को ही फायदा पहुँचने वाला है।

    मेरा मानना है कि बदलाव की कोशिश करने वालों को लीक से हटकर नई सोच के साथ काम करना चाहिए।

    8 comments:

    1. कानून मंत्री की प्रेस कांफ्रेंस के बाद भी सवाल तो वहीँ के वहीँ खड़े हैं जो सवाल थे उनका तो जवाब ही नहीं दिया कानून मंत्री नें उन्होंने तो वही कहा जो उनको कहना था !!

      ReplyDelete
      Replies
      1. बिलकुल सवाल वहीँ के वहीँ खड़े हैं... या शायद और भी बातें सामने आनी बाकी हो.

        लेकिन मैंने स्टेटस इसलिए वापिस लिया क्योंकि बिना पूरी बात हुए, बिना पूरे सवाल-जवाब हुए... बिना जाँच-परख किये ही मैंने दोषी ठहरा दिया था...

        फिर मैंने इस स्टेटस में उन्हें बरी नहीं किया है, बल्कि जितना मुझे लगा उतना बोला और बाकी तथ्यों का इंतज़ार करना बेहतर समझा...

        Delete
    2. कानून मंत्री के परिवार का एनजीओ अभी संदेह के घेरे से बाहर नहीं है, ऐसे कोई सबूत भी सामने नहीं आए हैं कि उन्हों ने सभी दस जिलों में केम्प लगाए थे। इतनी शीघ्र फेसबुक स्टेटस को वापस लेने का कोई कारण नहीं बनता है।

      ReplyDelete
      Replies
      1. क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि मैंने फेसबुक स्टेटस बिना किसी सबूत को देखे ही लिख दिया था... जो कि मेरी गलती थी... चाहे कोई गुनाहगार ही सही, मगर बिना सबूत देखे यूँ ही इलज़ाम लगाना मैं ठीक नहीं मानता हूँ... इसलिए अबकी बार अपना स्टेटस थोडा जाँच परख कर ही लिखूंगा... हालाँकि पिछली बार भी मैंने किसी का नाम नहीं लिखा था...

        Delete
    3. आप खुद कह रहे है की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और आप ने ही राय बदलने में जल्दबाजी कर दी , जिस फोटो को कल दिखा कर बताया जा रहा है की कैम्प लगा था किन्तु वो ये नहीं बता रहे थे की ये कैप कब लगा था फोटो किस कैम्प की है असल में तो घोटाला उसके पहले के फैनेशियल इयर में हुआ था , और जो फोटो वो दिखा रहे थे वो उसके बाद की थी उस फोटो के बैनर में ही तारीख लिखी हुई थी , बुलंद शहर में जिस अधिकारीक पोस्ट और नाम का मुहर है वो पोस्ट ही सरकार ने बुलंद शहर में नहीं बनाया है , एक दो नहीं 40 अधिकारियो के हस्ताक्षर के साथ हि सरकारी मुहर तक फर्जी है , यहाँ तक की जिन विकलांगो का नाम है उनमे से कई तो उसके पहले ही मृत हो चुके थे या उस नाम का कोई उस जगह पर न है न कभी था , दुसरे चैनल बता रहे है की हा कुछ कैम्प लगे थे किन्तु केवल 5-6 लोगो को उपकरण दिया गया और कहा गया की 50 को दिया गया , अब तो हर चैनलों के पास लोगो की शिकायत आ रही है जिनके नाम पर उपकरण दिने की बात की जा रही है , क्या सब झूठ है यहाँ तक की कैग ने उनको 10% ब्याज के साथ वो सारा 71 लाख वापस करने को कहा था क्या वो भी झूठ है , क्या कैग बिना किसी कागत की जाँच पड़ताल को किये ही ये जुरमाना लगा देगी , यु पी की एक नहीं दो दो सरकारों ने ये पूरा मामला देखा है जाँच की रिपोर्ट दी है वो सब भी झूठ है ।

      अब कौन सी जाँच होगी वो तो पहले ही हो गई है अब तो वो लोग कह रहे है की ये जाँच गलत है अब जाँच की जांच की जाये , शयद तब तक जाँच की जाये जब तक की वो छुट न जाये ।

      आज सुबह बुलंद शहर के एक दुसरे कांग्रेसी नेता ने विकलांगो की परेड कराई की देखिये इन विकलांगो को 16 अगस्त 2011 में उपकरण दिए गए मेरी देख रेख में और उनकी झुठ वही सामने आ गया जब दुसरे चैनलों ने विकलांगो से बात की तो उन्होंने बताया की ये उपकरण उन्हें कल या आज दिए गए है हद तो तब है की नेता जी ने उन उपकरनो से उसके कवर तक नहीं हटाये थे , और भूल गए की जिस तारीख को उन उपकारों को बांटने का दावा वो कर रहे है लुईस खुर्शीद के अनुसार तो उस तारीख को उपकरण बताने के लिए नहीं बल्कि पता करने के लिए कैम्प लगाये गए थे ।

      ReplyDelete
      Replies
      1. अंशुमाला जी मैंने अपनी राय नहीं बदली, लेकिन जब तक इलज़ाम साबित नहीं हो जाता या तथ्य सामने नहीं आ जाते, तब तक सीधे-सीधे इलज़ाम लगाना मुझे ठीक नहीं लगा... बिना जुर्म साबित हुए या साफ़ तथ्य सामने आये मुलजिम को मुलजिम की जगह मुजरिम लिखना कैसे सही कहलाया जा सकता है? पहले कहा गया था कि कोई कैम्प नहीं लगा, लेकिन कम से कम तीन-चार कैम्प की अखबार की कटिंग तथा अन्य की फोटो दिखाई गयी... खुद अजहरुद्दीन वहां मौजूद थे, जिससे ज़ाहिर होता है कि सबूत चाहे पूरे-हो-ना-हों कम से कम इलज़ाम तो पूरे-पूरे ठीक नज़र नहीं आते...

        इसलिए इस मामले में मुझे इंतज़ार करना ज़्यादा बेहतर लगा...

        Delete
    4. Replies
      1. शुक्रिया विनय भाई!

        Delete