इतने नारों और इतनी कवायदों के बाद भी कुछ नहीं बदला है... शर्म का मुकाम तो यह है कि हम पुरुष आज भी सड़कों पर लड़कियों को घूरते, उनपर फिकरे कसते नज़र आ रहे हैं... बलात्कारी आज भी टारगेट तलाश रहे हैं और उन्हें रोक सकने वाले आज भी मुंह को सिल कर और हाथों को बाँध कर अपने-अपनी राह पकड़ रहे हैं...
लड़कियां आज भी घरों से निकलते हुए डरती हैं... और समाज आज भी बलात्कार पीड़ित लड़कियों को ही गुनाहगार समझ कर रोजाना बे-आबरू कर रहा है...
यहाँ तक कि पुरुष बलात्कार का तमगा लगाए गर्व से टहल रहे हैं, घर वाले, जान-पहचान वाले आज भी बलात्कारियों का बचाव करते नज़र आ रहे हैं...
कुछ भी तो नहीं बदला है... कहीं उम्मीदें बेमानी तो नहीं हैं...
न बदलने की चिंता हुई है।
ReplyDeleteबिना सामाजिक क्रान्ति हुए इस देश में कुछ नहीं बदलेगा।
ReplyDeleteहम पोस्टों को आंकते नहीं , बांटते भर हैं , सो आज भी बांटी हैं कुछ पोस्टें , एक आपकी भी है , लिंक पर चटका लगा दें आप पहुंच जाएंगे , आज की बुलेटिन पोस्ट पर
ReplyDeleteजब तक कानून व्यवस्था में कोई सख्त बदलवा नहीं आयेगा कि लोग उसका तोड़ निकालने के बाजाए उससे डरें तब तक कुछ होने वाला नहीं....
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