बेटियां बहुत नाराज़ थी! बड़ी बिटिया 'ऐना' बोली कि आप अच्छे नहीं हैं, आपने promise किया था और break कर दिया!
कल दोनों बेटियों को रावण दहन दिखाने ले कर गया था, मगर कल बहुत ही व्यवस्थित कार्यक्रम था। इस बार खाली मैदान के आगे बैठने का इंतजाम किया गया था, जिसको बड़े से पांडाल से कवर किया गया था। मगर उसमें अन्दर जाने के लिए बहुत लम्बी लाइन लगी थी।
हालाँकि पीछे से वीआईपी पास से जाने का इंतजाम था, मगर मुझे वहां से अन्दर जाना घंटों से लाइन में लगी इतनी भारी भीड़ के साथ अन्याय लगा। इसलिए मैं बाहर से ही बेटियों को किसी तरह समझा-बुझा कर वापिस ले आया... मगर उनका सारा उत्साह मायूसी में तब्दील हो गया!
ओह.
ReplyDeletethoda kasht sahkar ravan dahan dikhana hi chahiye tha .
ReplyDeleteशिखा जी, क्या कहूँ, भीड़ ही इतनी थी कि हिम्मत ही नहीं कर सका। पहले इंतजाम खुले मैदान में होता था, बिना किसी ताम-झाम के और हम भीड़ से दूर खड़े होकर ही बच्चो को दिखा लाते थे। मगर इस बार 'इंतजाम' के 'तामझाम' के कारण हम ही नहीं पता नहीं कितने लोगो को वापिस जाना पड़ा!
Deletevery sad....aapko dikhana chahiye tha...
ReplyDeleteविजय भाई इतनी भीड़ देखकर बच्चों को लाइन में लगाने की हिम्मत ही नहीं कर सका :-(
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (15-10-2013) "रावण जिंदा रह गया..!" (मंगलवासरीय चर्चाःअंक1399) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया शास्त्री जी!
DeleteEk Sachhi प्यार की बात Ka Varnan Jab Koi Karta Hai Dil Bhar Aata Hai.
ReplyDeleteThank You.
Best wishes!
ReplyDeleteVinnie