निकाह की 'हाँ'

हमारे देश के मुस्लिम समुदाय में विशेषकर उत्तर भारत में लड़कों और खासकर लड़कियों से शादी से पहले अकसर उनकी मर्ज़ी तक मालूम नही की जाती है, एक-दुसरे से मिलना या बात करना तो बहुत दूर् की बात है... रिश्ते लड़के-लड़की की पसंद की जगह माँ-बाप या रिश्तेदारों की पसंद से होते हैं. ऐसी स्थिति में निकाह के...
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परिस्थितियों को आत्म विश्वास से करें काबू

जब आपका मजाक उड़ाया जाता हैं तब इसको नियति ना बनने दें, बल्कि ऐसी परिस्थिति में इस चुनौती को आप अपने दृढ़ विश्वास के द्वारा और भी अधिक आसानी से अपने हित में कर सकते हैं. मजाक उड़ाना एक नकारात्मक प्रतिक्रिया है, जिसके कारण सकारात्मक प्रवत्ति के लोग दुगने वेग से आपके पक्ष में आएँगे - Shah Naw...
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घटिया राजनीती - ऊबते लोग

दिल्ली में RaGa और मध्य प्रदेश में NaMo की रैलियों में भीड़ नदारद होने लगी है, लाखों की भीड़ का दावा करने वाले दस-बीस हज़ार लोगो को भी नहीं जुटा पा रहे हैं... यह बताता है कि जनता नेताओं से ऊब रही है... जिस तरह की राजनीती और बयानबाज़ी चल रही है, उससे देख कर यह ऊब जायज़ भी लगती है... देश में अनेकों...
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सृजन एवं सर्जक

एक तरफ सारी दुनियाओं का 'रब' है जो समंदर के अंधेरों में छोटे से कोमल जीव की रक्षा के लिए भी कठोर सीपियाँ बनाता है और वोह भी ला'तादाद एवं किसी की मदद के बिना... ऐसी सीपियाँ जो देखने में खूबसूरती का बेजोड़ नमूना होती हैं, जबकि उन्हें देखने वाला कोई 'अक्लमंद' इंसान वहां मौजूद नहीं होता। और...
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सत्य में पक्षपात कैसा?

हिन्दू की बात हो, ना कोई मुसलमान की अब तो हर इक बात हो बस ईमान की हिन्दू-मुसलिम की जगह सत्य की तरफदारी होनी चाहिए। अक्सर लोग ऐसा करते भी हैं, मगर कुछ लोगो को छोड़कर। जिनके लिए सही-गलत को देखने का चश्मा धार्मिक अथवा जातीय भेदभाव से प्रभावित होकर गुज़रता है। कुछ अज्ञानतावश ऐसा करते हैं तो कुछ राजनैतिक...
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रावण-दहन ना देख पाने की मायूसी

बेटियां बहुत नाराज़ थी! बड़ी बिटिया 'ऐना' बोली कि आप अच्छे नहीं हैं, आपने promise किया था और break कर दिया! कल दोनों बेटियों को रावण दहन दिखाने ले कर गया था, मगर कल बहुत ही व्यवस्थित कार्यक्रम था। इस बार खाली मैदान के आगे बैठने का इंतजाम किया गया था, जिसको बड़े से पांडाल से कवर किया गया था। मगर...
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नेताओं की नकली धर्मनिरपेक्षता

नकली धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़कर 'धर्मनिरपेक्षता' को बदनाम करने वाली पार्टियाँ चाहे जितना मर्ज़ी धार्मिक भेदभाव फैलाएं, वोटों के लिए दंगों की साजिशों में शामिल रहें, इनकी छवि धर्मनिरपेक्ष ही रहने वाली है।  हमारे बौद्धिक विकास के स्तर का इसी से अंदाज़ा लग जाता है। आज भी हम बड़े दुश्मन से निपटने के लिए छोटे दुश्मन का सहारा लेने वाली सोच के ग़ुलाम है...
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हुक़्म नहीं है 'फतवा'

'फतवा' केवल सवाल करने पर ही दिया जाता है और मालूम करने वाले व्यक्ति के लिए ही होता है। ज़रूरी नहीं कि वह दूसरों के लिए भी सही हो। क्योंकि फतवा विशेष परिस्थिति के अनुसार इस्लामिक उसूलों की रौशनी में दी गयी 'सलाह' या 'मार्गदर्शन' का नाम है। तथा सम्बंधित व्यक्ति उसका पालन अथवा नज़रअंदाज़ कर सकता...
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क्योंकि मानसिक विक्षिप्त वोटर नहीं हैं

क्या विकास का फटा ढोल बजाने वाली सरकारों के पास सड़कों पर दर-बदर की ठोकरे खाने वाले मानसिक विक्षिप्त लोगो के लिए कोई प्लान नहीं है? उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है? उनकी मदद के लिए कोई बजट नहीं? या कोई ऐसा बिल जो मंत्रिमंडल समूह ने अप्रूव कर दिया हो या लोकसभा/राज्यसभा में हो?  कुछ मानवीय...
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चुनावी मौसम में मासूमों की बलि

सेनाएँ तैयार हो चुकी हैं, सेनापति ताल ठोक रहे हैं... मासूम जनता की बलि चढ़ाई जा रही है... देश की फिज़ा को बदबूदार बनाए जाने की कोशिशें रंग ला रही हैं। पिद्दी से पिद्दी पार्टी का नेता भी हर हाल में प्रधानमंत्री बनना चाहता है... आखिर यह इलेक्शन होते ही क्यों हैं??? ...
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वोटों के लालची इंसानियत की लाश के चीथड़े उड़ा रहे हैं

कुछ को लग रहा है मुसलमान मारे जा रहे हैं और कुछ को लग रहा है हिन्दू... किसी का भाई दंगो का शिकार हुआ है किसी का बेटा और किसी बाप... कितनी ही औरतों की आबरू को कुचल दिया गया... मगर हर इक अपने-अपनों के गम में उबल रहा है और दूसरों की मौत पर अट्टहास कर रहा है... घिन आती है इस सोच पर! यक़ीन मानिये...
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कहानी हर घर की...

सास चाहती है बहु उसके 'हिसाब' से चले और बहु चाहती है कि सास उसके 'हिसाब' से! वहीँ पिता चाहता है बेटा उसके 'हिसाब' से चलना चाहिए, मगर बेटे का 'हिसाब' कुछ दूसरा ही होता है। उधर पति चाहता है कि पत्नी पर उसका 'हिसाब' चले मगर पत्नी अपना 'हिसाब' चलाना चाहती है। आखिर दूसरों पर अपनी सोच थोपने की...
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Juvenile Act बदलने के लिए आन्दोलन की आवश्यकता

दामिनी कांड के तथाकथित नाबालिग अभियुक्त को जो सज़ा हुई है, वोह कानून के मुताबिक तो एकदम ठीक हई है, मगर न्याय के एतबार से इस सज़ा को नहीं के बराबर ही कहा जाएगा। मुझे लगता है ध्यान और कोशिश इस सज़ा से भी अधिक ऐसे कानून को बदलने पर होनी चाहिए जिसके तहत रेप विक्टिम को पूर्ण न्याय नहीं मिल पाया। Juvenile...
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पश्चिम जगत अब उन्ही आतंकवादियो का समर्थक क्यों है?

जिन आतंकवादी संगठनों की हरक़तों के कारण पश्चिम जगत दुनिया के सारे मुसलमानों को आतंकवादी ठहराने पर तुला हुआ था, आज वही संगठन उनके लिए सीरिया में मुजाहिदीन हो गए? अब उन पर ड्रोन हमले नहीं बल्कि हथियार पहुंचाएं जा रहे हैं... आम फौजियों की तरह सैलिरी, हथियार और अन्य सुविधा मुहैय्या करवाई जा रही...
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बयान और बस बयान

हमारे सैनिकों को शहीद करने वाले चाहे पाकिस्तानी सैनिक थे या नहीं थे, परन्तु आये तो उसी धरती से थे। वहीँ पर खुलेआम आतंकवादियों के ट्रेनिंग शिविर भी लगते हैं, जिन्हें वहां की सरकार खुलेआम संरक्षण देती है। जब आपने इतनी जल्दी उनकी पहचान पता कर के हमपर इतना उपकार कर ही दिया है तो आपको उनके ठिकानों...
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कब बनेंगे इंसान?

बटला हाउस इनकाउंटर हो या मालेगाँव ब्लास्ट, मामला चाहे इशरत जहाँ का हो या फिर साध्वी प्रज्ञा का, सबको अपने-अपने धर्म के चश्मे से देखा जाता है। मीडिया जिसके सपोर्ट में रिपोर्ट दिखाए वोह खुश दूसरों के लिए बिकाऊ मिडिया बन जाता है... कितने ही इन्सान मर गए या मार दिए गए, मगर किसी को गोधरा का ग़म है तो...
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बेहतरीन इबादत

सबसे बेहतरीन इबादतों में से एक है तन्हाई में अपने ईश्वर को याद करना, जहाँ तीसरा कोई नहीं हो... जैसे कि रात के अंधेरों में उससे बातचीत करना या फिर शौच या स्नान के समय कहना कि जिस तरह शरीर की गन्दगी से मुझे पाक़ किया उसी तरह मेरे विचारों की गन्दगी को भी दूर कर दे....
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पति-पत्नी: आज की ज़रूरत

हालाँकि सच यही है कि वैवाहिक रिश्ता एक-दूसरे से मुहब्बत और अपने 'हक़' की कुर्बानी पर ही टिका होता है। मगर कडुवी सच्चाई यह है कि अक्सर यह कुर्बानी लड़कियाँ ही ज्यादा देती हैं। आज के हालातों को देखते हुए माता-पिता के द्वारा लड़कियों को बचपन से ही कम से कम इतना 'ताकतवर' और 'आत्मनिर्भर' बनाए जाने की...
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दिल्ली में घूमती हैवानो की भीड़

दिल्ली के बाशिंदे हैवानियत की सारी सीमाएँ रोंदते जा रहे हैं, आखिर इसका ज़िम्मेदार कौन है?  हर बलात्कारी को पता है कि वह एक ना एक दिन पकड़ा ही जाएगा, उसके बावजूद बलात्कार की घटनाएं इस कदर तेज़ी से बढ़ रही हैं। परसों बस के अन्दर एक मासूम बच्ची के साथ बलात्कार किया गया, कल एक नेपाली युवती के साथ...
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जागते रहो

मेरे द्वारा सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाने पर यह नहीं समझ लेना कि मैं कोई संत हूँ और बुराइयाँ मेरे अंदर नहीं हैं... बल्कि मेरा मानना है कि मेरे आवाज़ उठाने से सबसे पहला फायदा मुझे ही होगा... कोई माने ना माने, मेरे स्वयं के मान जाने की तो पूरी उम्मीद है ही... जहाँ मुझे लगता है कि कोई बुराई समाज में व्याप्त है, वहां आवाज़ उठता हूँ, जिससे कि वह बुराई मेरे अन्दर से समाप्त हो जाए। 'जागते रहो'...
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तो क्या डंडों से सफाया होगा आतंकवाद का?

हद है... सीआरपीएफ के जवानों को कश्मीर पुलिस द्वारा घाटी में बिना हथियारों के लड़ने पर मजबूर किया जा रहा है। मतलब आधुनिक हथियारों से लैस आतंकवादियों से लड़ने के लिए लकड़ी का डंडा??? इससे वह खुद की सुरक्षा करेंगे या आम जनता की?   इससे अच्छा तो यह है कि सीआरपीएफ की ज़िम्मेदारी कश्मीर पुलिस को...
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ईनाम की इच्छा

स्वर्ग तो अच्छे कर्म करने वालों के लिए रब की तरफ से ईनाम है और ईनाम की लालसा में अच्छे कर्म करने वाला श्रेष्ठ कैसे हुआ भला? हालाँकि फायदे या नुक्सान की सम्भावना आमतौर पर मनुष्य को कार्य करने के लिए  प्रोत्साहित अथवा हतोत्साहित करती ही हैं। लेकिन...
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ज़ालिम का विरोध और मजलूम का समर्थन

अगर परिवर्तन चाहते है तो गलत को गलत कहने का साहस जुटाना ही पड़ेगा, ज़ालिम का विरोध और मजलूम का समर्थन हर हाल में करना पड़ेगा।  और ऐसा तभी संभव है जबकि तेरा-मेरा छोड़कर इंसानियत के खिलाफ उठने वाले हर कदम का विरोध हो। जैसा कि अजमेर शरीफ दरगाह की कमिटी ने हमारे सेनिकों की बेहुरमती के विरोध...
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यह तेरा घर, यह मेरा घर?

आखिर यह रीत किसने बनाई कि पत्नी ही शादी के बाद अपना घर छोड़ कर ससुराल जाए, इक्का-दुक्का जगह पति भी जाते हैं पत्नी के घर। मगर यह रीत क्यों? पति-पत्नी मिलकर घर क्यों नहीं बनाते हैं? जहाँ उन दोनों को और उन दोनों के परिवार वालों को एक सा सम्मान, एक सा प्यार और एक से अधिकार मिले। ...
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धार्मिकता और धर्मनिरपेक्षता

धार्मिकता और धर्मनिरपेक्षता के एक साथ चलने में कोई भी परेशानी नहीं है लेकिन धर्मान्धता और धर्मनिरपेक्षता का एक साथ चलना मुश्किल है।  मेरी नज़र में धर्मनिरपेक्षता का मतलब है किसी के धर्म पर नज़र डाले बिना सबके लिए समानता और हर धर्म का आदर। हालाँकि धर्मनिरपेक्षता का मतलब मेरे लिए हर एक धर्म...
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